भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़े घरन के छोरा नईंयाँ / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:45, 16 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़े घरन के छोरा नईंयाँ
हम रेशम के डोरा नईंयाँ

इज़्ज़त सें हम जीवौ सीखे
टुकड़खोर हथजोरा नईंयाँ

हम चाहत सब सुख सें रैवें
तुम जैसे घरफोरा नईंयाँ

दुनिया की दौलत मिल जावै
ऐसे सोई अघोरा नईंयाँ

गुनन भरे झोला हैं हम तौ
सड़े भुसा के बोरा नईंयाँ

साँची सुगम कैत है मौ पै
मिठबोला मौजोरा नईंयाँ