भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बड़े घरन के छोरा नईंयाँ / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
बड़े घरन के छोरा नईंयाँ
हम रेशम के डोरा नईंयाँ
इज़्ज़त सें हम जीवौ सीखे
टुकड़खोर हथजोरा नईंयाँ
हम चाहत सब सुख सें रैवें
तुम जैसे घरफोरा नईंयाँ
दुनिया की दौलत मिल जावै
ऐसे सोई अघोरा नईंयाँ
गुनन भरे झोला हैं हम तौ
सड़े भुसा के बोरा नईंयाँ
साँची सुगम कैत है मौ पै
मिठबोला मौजोरा नईंयाँ