भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हें अपने ख़िलाफ़ नहीं जाना चाहिए / नीलोत्पल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 22 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह=पृथ्वी...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अपनी चीज़ों को
मिलाओ मत किसी और में
वे हमेशा नाकाफ़ी साबित होंगी
क्या तुम नहीं चाहते
खुले आसमान की बारिश
वे बरसती बून्दों में
एक हो जाती हैं
ज़मीन पर गिरते ही
लेकिन तुम देखना
पत्तों पर ठहर कर
वे अलग कर देते हैं
सतह पर आए
किसी भी द्रव को
टिकता वही है
जहाँ जीवन छूट जाता है
जिसे थामते हैं हाथ
अपनी बातों को
मिलाओ मत किसी और में
वे घुलेंगी नहीं
वे बनी हैं अपनी परिधि में
तुम्हें अपने ख़िलाफ़ नहीं जाना चाहिए
जब तुम मौसम का विचार नहीं कर रहे हो