जैसा कि हर सच के बाद / नीलोत्पल
हमारी मौतें नहीं हुईं...
जैसा कि हर सच के बाद
ज़मीन में दफ़्न अंकुर के होने की
तफ़्तीश में रखना होता है यह लघु जीवन
तमाम बुराइयों के बाद
ऐसा लगता है
जैसे सब कुछ का अंत
फ़सलें, समुद्र और विचार
सब कुछ हमारी तलवार का भोथराया पक्ष
कुछ इस तरह उतरे थे हम
ठोस ज़मीन के अंदर
कि जड़ों का अनुभव हमारा अपना था
हम आज़ाद थे
आज़ाद याने अपनी ही बनाई नैतिकता की दीवार
जो उलांघने के बाद भी ढ़हाई नहीं गई
याने अपने क़िस्म की ज़िंदा आवाज़
आज हम निकल आए
धड़कते शब्दों से बाहर
अब छूना तो होता है
लेकिन उस तरह से नहीं कि
भीतर बोला गया सच
खोल दे नमीं की परतें
ज़बान पर रखा अलाव
समुद्र की तरह उछले
जीवन के हर प्रकोष्ठ में
ज़रूरी नहीं कि
रास्ते सीधी लकीर खींचते हों
उनका उलझाव तोड़ता है
हमारी अवरूद्ध चेतना को
हम कटघरे में हैं आरोप संगीन हैं
लेकिन अभी हमारी मौतें नहीं हुईं...