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मेरे सीने पर चाक चलता है / नीलोत्पल

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मेरे सीने पर चाक चलता है

हम सब घर में बैठे हैं व्यस्त
मुझे अच्छी लगती है यह व्यस्तता
लेकिन जैसे ही बाहर आता हूं
नुकीले पत्थर, गुर्राती आवाजें
डूबते अरमान फेंकती कुछ महीन चीज़ें
दरों से टकराती है मेरी दबी आवाज़ में
मैं घिर जाता हूं
बाहर के असमंजस से

मेरे सीने पर चाक चलता है
मैं घंटों, महीनों, सालों
कुछ नहीं गढ़ पाता
जैसे एक बेआवाज़ चिड़िया
गाती है बारीश में
पत्तों से टपकता है द्रव
सब कुछ बाहर आता है साफ़-चमकदार
लेकिन दूर तक एक तन्द्रा, एक खौफ़
एक दौड़ एक सरसराती बेचैनी
निगल लेती है ऋतुओं की गीली सांसे

मैं कुछ नहीं गढ़ पाता
जहां खेतों में आलुओं के निकाले जाने की गंध है
जहां रेशा-रेशा मक्का के दानों भरा
टपकता है दूध हमारी धूजती ज़बान पर
जहां आसमान के फैलाव के इतने क्षितिज हैं
कि एक समय में लौटना आसान नहीं

मैं घिरा हूं, भटका हूं
मैं हर सुबह देखता हूं
एक फटा नक़्शा, एक चींथा नक़्शा
लगातार टूटने की आवाजों से
घिरा है शब्द-शब्द
बस हर बार सुबह
मैं कहता हूं
कोई प्रार्थना नहीं, किसी के लिए अनुनय
या शुभकामना भी नहीं
ये मेरी रंगत या हैसियत नहीं
बस अपने हलके जी में चाहता हूं
कहीं कोई फ़रमान

कोई पंचायत
छिन तो नहीं रहा
किसी की आज़ादी
किसी का प्रेम
किसी के सपने