भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं विदा नहीं ले सकता / नीलोत्पल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 23 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह=पृथ्वी...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं इस तरह विदा नहीं ले सकता

मैं भूल नहीं सकता उन्हें
जो जीवन की पूर्णता और अपूर्णता के बीच हैं

वे जो कल फिर भर जाएंगे
इस दुनिया को,
जड़ों को
और हमारी उम्मीदों को
उन्हें लेता रहूंगा इन शब्दों में
पुनर्जीवित करूंगा
उनके प्रेम, भरोसे और आंसुओं को

मैं विदा नहीं ले सकता घर की हद तक फैले
इन जंगलों से
यहां कुछ भी ऐसा नहीं कि जिसे आत्मसात न कर सकूं
अपने ढलते मुख के लिए
मेरे चेहरे पर तुम्हारी रोशनियां हैं
मैं दुनिया की तमाम हरकतों पर
तुम्हारे हृदय से गिरी हुई
पत्तियां बिछा देना चाहता हूं

मैं धंसा हुआ हूं उलझे चेहरों में
पसीने, थकान, उदासी, ऊब
झगडे़, प्यार, गुस्से
और लोगों की याददाश्त में

मैं यहां एक यात्री हूं
मेरे हाथ लोगों के कंधों पर हैं

जब हम नदी पार करेंगे
विदा लेना आसान नहीं होगा

हम भूल जाएंगे नाम और चेहरे
हम भाषा और जगह बदलेंगे
हम अनजान बने रहेंगे हमेशा इस दुनिया में

जबकि हमारा हाथ अब भी कंधों पर होगा
जाने कितनी सदियां पार कराता
कभी न विदा लेता हुआ