भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहुत दिनन पिय बसल बिदेसा / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 24 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan}} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बहुत दिनन पिय बसल बिदेसा।
आजु सुनल निज अवन संदेसा।
चित चिवसरिया मैं लिहलों लिखाई।
हृदय कमल धइलों दियना लेसाई।
प्रेम पलँग तहँ धइलों बिछाई।
नखसिख सहज सिंगार बनाई।
मन हित अगुमन दिहल चलाई।
नयन धइल दोउ दुअरा बैसाई।
धरनी धनि पलपल अकुलाई।
बिनु पिया जिवन अकारथ जाई।