भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवने खोंतवा में लुकाइलु / भोलानाथ गहमरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 24 दिसम्बर 2014 का अवतरण (Sharda suman moved page निर्गुण / भोलानाथ गहमरी to कवने खोंतवा में लुकाइलु / भोलानाथ गहमरी)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवने खोंतवा में लुकाइलु, आहि रे बालम चिरई,
वन-वन ढूँढलीं, दर-दर ढूँढलीं, ढूँढलीं नदी के तीरे,
साँझ के ढूँढलीं, रात के ढूँढलीं, ढूँढलीं होत फजीरे,
मन में ढूँढलीं, जन में ढूँढलीं, ढूँढलीं बीच बजारे,
हिया-हिया में पैंइठ के ढूँढलीं, ढूँढलीं विरह के मारे,
कौने सुगना पे लुभइलु, आहि रे बालम चिरंई……….

गीत के हम हर कड़ी से पूछलीं, पूछलीं राग मिलन से,
छन्द-छन्द, लय ताल से पूछलीं, पूछलीं सुर के मन से,
किरण-किरण से जाके पूछलीं, पूछलीं नील गगन से,
धरती और पाताल से पूछलीं, पूछलीं मस्त पवन से,
कौने अंतरे में समइलु, आहि रे बालम चिरई…………

मन्दिर से मस्जिद तक देखलीं, गिरजा से गुरद्वारा,
गीता और कुरान में देखलीं तीरथ सारा,
पण्डित से मुल्ला तक देखलीं, देखलीं घरे कसाई,
सागरी उमरिया छछनत जियरा, कबले तोहके पाई,
कौनी बतिया पर कोहइलु, आहि रे बालम चिंरई……..