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चमक / अरविन्द कुमार खेड़े
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सर्द कुहांसे में
स्कूल जाते
एक बच्चे ने अचानक
अपनी साईकिल को खड़ी कर
ऊनी दस्ताने को निकाल
छुआ ओंस की बूंदों को
हरे-हरे पत्तों पर जो
कर रही हैं अठखेलियाँ
चमक उठा बच्चे का चेहरा
या ख़ुदा
आज सूरज का
दीदार न कराना
आज रात
चाँद को न उतारना
बस भेज देना तारों को
जमीं पर.