भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सौंह कियें ढरकौहे से नैन / बिहारी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 29 दिसम्बर 2014 का अवतरण
सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै।
मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू ,सु कहयौ कछु ये सुति साँभल ए।
भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।
रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।