Last modified on 29 दिसम्बर 2014, at 14:15

बिरहानल दाह दहै तन ताप / बिहारी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 29 दिसम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी।
घर तैं लखि चन्द्रमुखीन चली, चलि माह अन्हान कछू जु सदी।
पहिलैं ही सहेलनि तैं सबके, बरजें हसि घाइ घसौ अबदी।
परस्यौ कर जाइ न न्हाय सु कौन, री अंग लगे उफनान नदी।।