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दोहा / भाग 1 / रसलीन

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राधा पद बाधा हरन, साधा करि रसलीन।
अंग अगाधा लखन को, कीनो मुकुर नवीन।।1।।

सो पावै या जगत में, सरस नेह को भाय।
जो तन मन में तिलन लो, बालन हाथ बिकाय।।2।।

मोर पच्छ जो सिर चढ़े, बालन तें अधिकाय।
सहस चखन लखि धनि कचन, परे मान छिन पाय।।3।।

बेनी बँधि इक ठौर ह्वै, अहि सम राखत ठौर।
बिथुरि चँवर से कच करत, मन बिथोरि घर चौंर।।4।।

जे हरि रहे त्रिलोक में, कालीनाथ कहाय।
ते तुव बेनी के डँसे, सब जग हँसे बनाय।।5।।

भनत न कैसे हूँ बनै, या बेनी की दाय।
तुव पीछे जे जगत के, पीछे परे बनाय।।6।।

मैमद झबियन मुकुत लखि, यह आयो जिय जागि।
ससिहित पीछे राहु के, नखत रहे हैं लागि।।7।।

चन्द मुखी जूरौ चितै, चित लीनो पहिचानि।
सीस उठायो है तिमिर, ससि को पीछे जानि।।8।।

यों बाँधति जूरो तिया, पटियन को चिकनाय।
पाग चिकनिया सीस की, या तें रही लजाय।।9।।

पाटी दुति जुत भाल पर, राज रही यहि साज।
असित छत्र तमराजमनु, धरयो सीस द्विजराज।।10।।