भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्याम! मैं सब विधि सदा तिहारी / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:39, 7 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग नट, झूमरा 22.9.1974

स्याम! मैं सब विधि सदा तिहारो।
तुम बिनु और कोउ नहिं अपनो, तुमहूँ नाथ! न मोहिं बिसारो॥
पचि-पचि मर्यौ काज कछु, अब ताक्यौ तव स्याम! सहारो।
रह्यौ न और कोउ अवलम्बन, अनुकम्पन करि तुमहि उबारी॥1॥
मोहिं न कानि और काह ूकी, पै तुम ही सों है हिय गारो-
तुम बिनु और न चहों स्याम! कछु, फिर काहे यह विलम, विचारो॥2॥
बुझी न प्यास हाय! नयनन की, मनसों भयो न भजन तिहारो।
तनुहूँ करत तनुहि की चिन्ता, कैसे होय हिये उजियारो॥3॥
कहा कहों कोउ पन्थ न सूझत, सब ही विधि यह हरि! हिय हारो।
अब सब आस-त्रास तजि प्यारे! पग तल को तज्यौ सहारो॥4॥
आयो चरन-सरन मनमोहन! निज बल को बल सबहि विसारो।
अव तुम तारो वा मारो प्रिय! हौं तो सव विधि भयो तिहारो॥5॥

शब्दार्थ
<references/>