भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह मन भयो विषयको चेरी / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:32, 9 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग मधुवन्ती, तीन ताल 13.7.1974

यह मन भयो विषय को चेरो।
बहुत भाँति सिख देहुँ याहि, पै फिरत न मेरो फेरो॥
कहा करों धावत इत-उत ही, चलत न कछु बस मेरो।
प्रतिपल तिन ही में भटकत है, गटकत गरल घनेरो॥1॥
स्याम-सुधा पायो, पै पामर चलत मोह-मद-प्रेरो।
पाये हूँ नहिं पियत मोह बस, वृथा फिरत भट-भेरो॥2॥
अपनो बल-छल काम न आवत, होत न नैंकु निबेरी।
जो कर धरि काढ़हु तुम प्रीतम! तो उर होय उजेरो॥3॥
पर्यौ पुकार करों मनमोहन! विषय-व्यालसों घेरो।
तुम बिनु कोउ न दीखत ऐसो जो करि सकै निवेरी॥4॥
दीन जानि अपनावहु प्यारे! हौं सरनागत तेरो।
सरन गहे की लाज राखि हरि! राखहु विरद बड़ेरी॥5॥