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जापै प्रियतम कृपा करैं / स्वामी सनातनदेव

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प्रियतम की कृपा ॥212॥
राग छायानट, तीन ताल 4.9.1974

जापै प्रियतम कृपा करैं-
ताको काल-व्याल हूँ जग में अनहित कहा करै॥
प्रीतम-प्रीति पग्यौ सो निसि दिन नाम-मन्त्र उचरै।
तासों मोह, द्रोह, ममता को सकलहि गरल गरै॥1॥
उलहैं प्रीति-प्रवाह हिये में, अग-जग सब बिसरै।
प्रियतम की बाँकी झाँकी करि सब भव-भीति टरै॥2॥
प्रीति पियूष पान करिबे सों ताकी मौत मरै।
अजर-अमर पद पाय हुलसि सो साँचे वरहिं वरै॥3॥
पायो अचल-अमल सुहाग, अब कहा करै न करै।
ताकी अविगत गति कहु जग में कापै समुझि परै॥4॥