भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे लिए ही..! / भास्करानन्द झा भास्कर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:21, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्करानन्द झा भास्कर |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज तुम ले ही लो
सारा आकाश
सारा दिन
घूम आओ जहां चाहो
स्वच्छंद
बहती हवा की तरह
छान मार लो
पूरी दुनिया
अपने मन की माफ़िक
जब थक जाओ
चलते चलते अकेला
मन की जिद्दी
पगडंडी पर
मन जब उचाट हो
मनमानी से,
जब हांफ़ने लगो
उहापोह उब में
डुब जाने पर
तब जरुर आना
एक बार
फ़िर से
मेरे पास...
मैं खडा मिलूंगा वहीं
निस्वार्थ
निस्तब्ध
निशब्द
शिद्दत से थामे
जिन्दगी की सांस
सजाये
खुशियों की सेज
संजोये
शान्ति और सुकुन
अहर्निश
तुम्हारे लिए...!