भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्षणिकाएँ / विश्वनाथ प्रताप सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:39, 12 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथ प्रताप सिंह |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
लिफाफा
पैगाम तुम्हारा
और पता उनका
दोनों के बीच
फाड़ा मैं ही जाऊँगा।
झाड़न
पड़ा रहने दो मुझे
झटको मत
धूल बटोर रखी है
वह भी उड़ जाएगी।