Last modified on 12 जनवरी 2015, at 19:36

भक्ति-भावना / सुजान-रसखान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 12 जनवरी 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सवैया

मानुष हों तौ वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्‍वारन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिंदी कूल कदंब की डारन।।1।।

जो रसना रस ना बिलसै तेहि देहु सदा निदा नाम उचारन।
मो कत नीकी करै करनी जु पै कुंज-कुटीरन देहु बुहारन।
सिद्धि समृद्धि सबै रसखानि नहौं ब्रज रेनुका-संग-सँवारन।
खास निवास लियौ जु पै तो वही कालिंदी-कूल-कदंब की डारन।।2।।

बैन वही उनको गुन गाइ औ कान वही उन बैन सों सानी।
हाथ वही उन गात सरै अरु पाइ वही जु वही अनुजानी।
जान वही उन आन के संग और मान वही जु करै मनमानी।
त्‍यौं रसखान वही रसखानि जु है रसखानि सों है रसखानी।।3।।

दोहा

कहा करै रसखानि को, को चुगुल लबार।
जो पै राखनहार हे, माखन-चाखनहार।।4।।

विमल सरल सरखानि, भई सकल रसखानि।
सोई नब रसखानि कों, चित चातक रसखानि।।5।।

सरस नेह लवलीन नव, द्वै सुजानि रसखानि।
ताके आस बिसास सों पगे प्रान रसखानि।।6।।