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हम लड़ रहे हैं / जनकवि भोला

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हम लड़ रहे हैं
हम किनसे लड़ रहे हैं?
हम लड़ रहे हैं
सामंती समाज से
रूढि़वादी समाज से
पूंजीवादी समाज से
अंधविश्वासी समाज से
आखिर क्यों ल़ड़ रहे हैं इनसे?
समता लाने के लिए
समाजवादी व्यवस्था लाने के लिए
पूंजीवाद के सत्यानाश के लिए
सांप्रदायिकता को समूल नष्ट करने के लिए
ब्राह्मणवाद को उखाड़ फेंकने के लिए
अंधविश्वास को दूर भगाने के लिए
क्योंकि-
इसी से गरीबी मिटेगी,
गरीबों को मान-सम्मान मिलेगा,
अब तक ये जो सिर झुका कर चलते थे
सिर उठाकर चलेंगे
इसी क्रांति से
अमन, चैन, शांति मिलेगी
सापेक्ष चेतना जगेगी
इसी चेतना के जगने से होगी क्रांति।
क्रांति का मतलब गुणात्मक, मात्रात्मक नहीं।
मात्रात्मक यानी पानी का भाप, भाप का पानी,
अर्थात पूंजीवादी सरकार का आना-जाना
फिर फिर वापस आना
गुणात्मक-
जैसे दूध का दही बनना
फिर कोई उपाय नहीं
दही का फिर से दूध बनना
अर्थात् पूंजीवादी सामंतवादी आतंकवादी सरकार का जाना
समाजवादी सरकार का आना।
अब तक के आंदोलन से
ऊपरी परिवर्तन होते रहे
अंतर्वस्तु नहीं बदली
अब गुणात्मक क्रांति होगी
अंतर्वस्तु भी बदलेगी
परिणाम
अब धरती पर पूंजीपति नहीं रहेगा
न जंगल में शेर रहेगा
न शेर वाला कोई विचार रहेगा
गरीबों की सरकार रहेगी
हम रहेंगे, हमारी जय-जयकार रहेगी
हमारा अब यही नारा रहेगा
न कोई हत्यारा रहेगा
न सामंती पाड़ा रहेगा
क्योंकि,
हम बढ़ रहे हैं, बढ़ रहे हैं...