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थारो काई काई रूप बखाणूँ रनुबाई / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

थारो काई काई रूप बखाणूँ रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारी अगळई मूंग की सेंगळई रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारो सिर सूरज को तेज रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारी नाक सुआ की रेख रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा डोला निंबू की फाक रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा दाँत दाड़िम का दाणा रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा ओंठ हिंगुळ की रेख रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा हाथ चम्पा का छोड़ रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारा पांय केळ का खंब रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।
थारो काई काई रूप बखाणूं रनुबाई,
सौरठ देस सी आई ओ।।