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भरथरी लोक-गाथा - भाग 5 / छत्तीसगढ़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बड़ अक्कल वाली ये रानी ये
देख तो भगवान
साते मँ कैसे आ बइठे हे
मनेमन मँ भरथरी हर, मोर गुनत हे ओ
बिना आगी पानी के बनावत हे
सबे सइना के न
मोर सोहाग ओ
चल बनाई के न
मोर सुन्दर कलेवा खवावय ओ, ये खवावय ओ, भाई ये दे जी।

सबे के पूर्ति ल करिके
मोर सुनिले न ओ
कइसे विधि कइना बइठे हे
भरभरी ह न
जब सोचे गिंया
ओही जनम ओ
मोर पलंग न, टूटे हे राम
रानी नई तो गिंया, मोर बताए ओ
मोर साली हर आज बतावय ओ, मँयहर पूँछव ओ
भाई ये दे जी।

आजेच्च पूछिहँव के काले ओ
कईके सोचत हे ओ
देख तो दीदी मोर मने म
भरथरी ये न
जब सोचि के राम
चल बइठत हे ओ
ओही समय म न
मोर चेरिया ल ओ
कइना भेजत हे राम
सुनिले जोगी मोर बात
तोर सारी ह
महल म बलावत हे चले जावॅव ओ, भाई ये दे जी।

गोदी म बालक ल धरावत हे
आज कइना ह ओ
देख तो दीदी मोर भरथरी ल
भरथरी ये ओ
बालक ल देखय न
सुनिले कइना मोर बात
सोने पलंग ओ
कइसे टूटिस हे ना
आज महली ये रात
तोर बहिनी हर ओ
सामदेई हर ना
नई बताइसे ओ
मोला बतादे कइना
मोर सदे के ये तो बाते ये ओ, तय बतादे ओ, भाई ये दे जी।

जब धन बोलत हे कइना ह
सुनिले जोगी मोर बात
मॅय हर नई तो बतांव न
मोर बालक हो
पहली ये गिंया
मोर गोदी म न
बालक हावे ओ
मॅय हर का करिहॅव ओ
मोर गोदी मा बालक हावय ओ, जोगी हावय ओ, भाई ये दे जी।

हरके अऊ बरजे ल नई मानय
भरथरी ये ओ
देखतो दीदी रटन धरे ये
मोर रानी ये ओ
सुनले भरथरी बात
मॅयहर छोड़त हव न
आजे चोला ल ओ
हेता करके दीदी
जीभ चाबी के न
मोर चोला ल ओ
चल छोड़त हे न
मोर राजा हर देखथे कइना ओ
बाई देखय ओ, भाई ये दे जी।

दफन देई के भरथरी
अपन रऊल बर ओ
देखतो दीदी चले आवत हे
एके महिना मे न
दूसर महीना के छाय
मोर सुआ के पेट में अवतारे ओ, चल धरय ओ, भाई ये दे जी।

बीच कंगोरा म
बइठके मोर फुलवा ये ओ
टोंटी-टोंटी दीदी बाजत हे
भरथरी ये न
मोर आवाज ल
चल सुन के न
घर ले निकलत हे
सुनले सुआ रे बात
ओही जनम के
मोर सारी अव न
तय बतादो हीरा
मोर सोने पलंग कइसे टूटिस हे न
कइसे विधि कर पूँछय हो, ये दे पूँछय ओ, भाई ये दे जी।

जब बोले मोर सुआ हर
सुनले जीजा मोर बात
कुकुर के पेट म अँवतारे न
तीन महीना म राम
मॅयहर लेहव हीरा
तोला दिल की बात
बतावॅव ओ बतावॅव ओ
जोगी ये दे जी।

जब सुआ मरी जायय ओ
मोर भरथरी ओ
पैर तरी सुआ गिर जाय
भरथरी ए न
दफन करें गिया
तीन महीना ल न
चल सोचत हे न
मॅयहर कब राजे ल सुनॅव ओ
जीव सफल ओ बाई होवय ओ, रानी ये दे जी।

नई अन्न खावॅव
पानी नई तो पियय दीदी
का बइहा-भूतहा होय हे
भरथरी हर ओ
मोरे बात मन
फुदका मारे राम
चल तरिन ओ
मन सोचिके न
मोर चेहरा गया कुम्हलाय, ये कुम्हलाय ओ, भाई ये दे जी।

गोरा बदन काला होई गय
चेहरा गय कुम्हलाय
दुबरावत चले जावत हे
तीने महीना म ओ
मोर जाई के न
मोर कइना हर राम
मोर कुकुर के पेट अवतार ये ओ, चल धरे ओ, भाई ये दे जी।

कुकुर के पेट अवतार ल
चल पैरा म ओ
जोगी पैरावट म
मोर जाइके ने
धीरे-धीरे गिंया
भरथरी ये न
ओही जनम के
भोर सारी अस ओ
सोने पलंग ह
कइसे टूटिस हे न
मोला हालेल देना बताय ओ भाई बोलय ओ, भाई ये दे जी।

जब बोलय मोर कुतनिन ह
सुनले जीजा मोर बात
मंय अवतारे ल धरे हॅव
दुई अवतारे ल धरे हॅव
सुनले जीजा मोर बात
सुरा के पेट में जनम लेहॅव
तब तोला जीजा
मॅय बता देहॅव
जब सोच के ओ
मोर कुकुर हर न
चोला छोड़त हे राम
भरथरी ये ना
दफन करिके ओ
मोर माथा ल धरके बइठे ओ, भाई आके ओ, भाई ये दे जी।

धरर-धरर आंसू चलत हे
सुनिले भगवान
का तो कलपना मोला परे हे
मन म सोचत हे न
विकट हैता गिंया
करी डारेंब ओ
मोर हाथे म चोला छुटे ओ, भाई छुटे ओ, भाई ये दे जी।

सुराके पेट म जाइके
अवतारे ओ
देख तो दीदी छै महीना मा
चल जनमथे न
चल डबरा म ओ
भूरी-भूरी दीदी
जिहां दिखत हे न
भरथरी ए ओ
खोजत जावय राम
सुनिले भगवान
सुनी लेट कइना बात
मोला कइसे आज बतावय ओ, ए बतावय ओ, भाई ये दे जी।

सोने पलंग मोर टूटिस
रानी हांसीस ओ
तेकर बात बता देना
जब बोलय मोर सुरा हर
सुनिले सुरिन मोर-बात
कहना वचन जोगी नई मानय
मोरे पिछे म
धरी ले जोगी
चोला छोड़ी के न
मैं ये दे जावत हॅव
कौंआ के पेट अवतार ओ, चल लेहॅव ओ, भाई ये दे जी।

तीन जोनी ल तो छोरी के
मोर जावत हे ओ
कौंआ के पेट मँ अवतारे न
चल जाई के न
मोर बइठे गिंया
मोर आमा के डार
मोर कांवे-कांवे ओ नारियाये ओ, भाई ये दे जी।

जब बोलय भरथरी ह
सुनले कौंआ रे बात
सुनले कोयली मोर काग
बोली से गिंया
मॅयहर लिहेंव पहिचान
मोर बइठे आमा के डारे ओ, ये दे बइठे ओ, भाई ये दे जी।

बोली से मय लिहेंव पहिचान
सुन काग मोर बात
कइसे पलंग पर टूटिसे
रानी हांसिस न
देदे साला जवाब
जब कौंआ हर ओ
चल मरत हे न
ये दे छोड़ॅव जोगी, अपन चोला ल न
मय हर गऊ के पेट अवतारे ओ, चल हेह्व ओ, भाई ये दे जी।

चोला स छोड़िके कौंआ हर
मोर गिरी गे ओ
अब दफन ये दे देवत हे
भरभरी ये न
फेर सोचत हे राम
चारे अवतारे न एकर होगे दीदी
येहर कब मोला बताहय ओ, बताहय ओ, भाई ये दे जी।

दस महीना के छॉय मा
कोठा मँ ओ
देखतो जनम लेके आवत हे
बछिया जोनी न
जल धरे हे न
सुघ्घर गइया ए ओ
मोर कइसे बछेवा हर दिखय ओ, ये दे दिखय ओ, भाई ये दे जी।

मुरली बिन गइया रोवत हे
सुनिले भगवान
बछड़ा हर रोवत हे दैहाने म
नोई दूध हर ओ
राउत बिना गिंया
चल कलपत हे ना
मोर जउने समय म ओ भरथरी चले आवय ओ, भाई ये दे जी।

सुनिले बछिया ए दे बाते ल
मोला बतादे ओ
सोने के पलंग मोर टूटे हे
ओही जनम के
मोर सारी अस ओ
बचन पियारी न
मोर हाल ल देना बताये ओ, भाई आजे ओ, भाई ये दे जी।