Last modified on 8 जनवरी 2008, at 14:51

छाँह छोड़ कर चल दूंगा मैं / केदारनाथ अग्रवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 8 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केद...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



छाँह छोड़ कर चल दूंगा मैं

लेकिन जाते-जाते, पहले,

तुम्हें फूल-फल दे ही दूंगा

मैं तरु हूँ-- धरती का बेटा ।