भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिव शकर चले कैलाश / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:15, 23 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

शिव शंकर चले कैलाश,
बुंदियां पड़न लगीं
कौना ने बो दई हरी-हरी मेहंदी
कौना ने बो दई भांग, बुंदियां पड़न लगी।।
गौरा ने बो दई हरी-हरी मेहंदी
भोला शंकर ने बो दई भांग। बुंदियां...
कौना ने बांटी हरी-हरी मेहंदी,
कौना ने बांटी भांग। बुंदियां...
गौरा ने बांटी हरी-हरी मेहंदी,
शंकर ने बांटी भांग। बुंदियां...
कौना रचाई हरी-हरी मेहंदी,
कौना ने पी लई भांग। बुंदियां...
गौरा के रच गई हरी-हरी मेहंदी,
शिवशंकर ने पी लई भांग। बुंदियां...
भोला शंकर को चढ़ गई भांग, बुंदियां...