Last modified on 27 जनवरी 2015, at 12:43

मैया के भुवन मे हरे चदन बिरछा / बुन्देली

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मैया के भुवन में हरे चंदन बिरछा
लंगुरा डार कटाय हो मां
हँस-हँस पूंछे देवी जालपा काहे की
खातिर कटाये हो मां।
मैया खों तो कइये मां चदन पलकियां
मड़खों बजर किवार हो मां। मैया...
उठा पलंगवा बीरा लंगुरवा
डारे बढ़ई की दुकान हो मां। मैया...
बढ़ई तो कइये चतुर सुजार
जो रुचि-रुचि पलंग बनाये हो मां। मैया...