Last modified on 28 जनवरी 2015, at 16:21

दरद भायला / राजू सारसर ‘राज’

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 28 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

संवेदणा बिहूणी
सीला माथै
रगड़का खांवता
बांसती आखर
कठै कोर सकै
सिन्दूरी सुपना
जका रात में
भरी नींद आवैं
जागती आंख्या में
फगत रड़कै।
सामी छाती
आभै रो सतरंगी
लै’रियौ चिर
इन्नर धणख ई
जद डबड़कां में
बदळ जावै।
नैणां भर नींर
मांयली पीड़
बा’रै परगटा सकै
खुद नीं मुळकै
पण लोकां मै हंसावै।
दरद रा डीगा डूंगर,
छानै नीं रवै।
सुख नै अंवेर’र
गोज में धरल्यां
बांथ में भरल्यां
धन है दरद !