भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आन्हर छथि भगवान / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 31 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्हार छथि भगवान, कहओ के

अन्हार छथि भगवान, कहओ के।
आजुक युगमे भौतिकवादक
फूसि-फटक अभिमान, कहओ के।

पाथरमे ओ बास करै’ छथि
आ हमरे उपहास करै’ छथि
हमरे सँ पुजबै’ छथि आ
हमरे पर ‘शेखी-शान’, कहओ के।

सुन्दरता लय पुरुष फटै’ छथि
नारी वर्गक नाक कटै’ छथि,
तें तँ महिला सब उठि चललीं
काटय पुरुषक कान, कहओ के।

ओ लड़ती आ भिड़ती जा कय,
सभा-कंच पर अड़ती जा कय,
पुरुष-समाजक बीच झाड़ती
बड़का टा व्याख्यान, कहओ के।

पुरुषक हेतु अनारी नारी
पुरुषे नारी हेतु अनारी
फूसि घोंघाउजिमे दूनू दल
‘होइ’ छथि व्यर्थ हरान, कहओ के।

प्रकृति-पुरुष दूनू समान अछि,
ने ई न्यून, न ओ महान अछि,
युग-चक्रक चक्कर पर नाचल
निश्चित अनुसन्धान कहओ के।

पेटक अछि लागल लपेट जा’
मुँह पर अछि लागल चपेट ता’
ककर माय ओ बाप ककर वा
होइत छै’ सन्तान, कहओ के।

सभक उखाही सब करैत अछि,
अपने टा लय जग मरैत अछि,
आनक लेखेँ आन बनल अछि
आलू सड़ल पुरान, कहओ के।

अपना लग संसार ढीठ अछि,
आँखिक लेखेँ पाछु पीठ अछि,
सभक जनै’ छै’ सब तैओ
अनके लय सब बैमान, कहओ के।

एकर विवेचन के करैत अछि,
जे ‘करैत’ अछि से करैत अछि
हमरो सन बुड़िवान बुझै’ अछि
अपनाकेँ विद्वान, कहओ के।

सब अलच्छ अवतार लेलक अछि,
रुच्छ छुच्छ संसार देलक अछि,
अपन वेगर्त्ते युग अछि आन्हर
परतच्छक परमान कहओ के।

रचना काल 1948 ई.