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पी.एल. चारि सय अस्सी / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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आब लोक बुझलक पी. एल् चारि सय अस्सी

जॉनसन वखारीमे विल्सन छथि ठेकी
भुट्टो छैथि उक्खरि, सुकर्ण थिका ढेकी,
चाउ-माउ जंघा, जर्दान बनल पुछड़ा
भारत वनि पैसल अछि सामवला मुसरा,

पैटन कचकूह धान भऽ गेल भरकुस्सा
राष्ट्र-संघ चालनि थिक चालि रहल भुस्सा।

ऊथाँ छथि सूप, नहि फटका रहलनि दाना,
फटकनिहार मार्शल अयूब छथि जनाना,
पुर्त्तगाल तुर्की बहार भेल अछि मेर्खी,
ई सुरक्षा-परिषद से औँटि रहल चर्खी,

आब लोक बुझलक पी.एल. चारि सय अस्सी,
भोलाकेँ आक धुथुर, भैरवकेँ खस्सी।

पूब पाकिस्तानमे अवतरली’ अछि दुर्गा,
पच्छिम पख्तून सब पकड़लनि अछि मुर्गा,
बीचोमे आहि रे वा! भय गेलनि कुगऽर,
चिनमार, पर चढ़ि गेलनि गोरका सुगऽर,
‘सेबर’ ओ ‘सर्मन’ प्रमाणित भेल कोहा,
एहने मुँह लेने मि´ा लेताहनि लोहा!

रचना काल 1965 ई.