Last modified on 31 जनवरी 2015, at 18:17

प्रजा वर्गकेँ पड़ल प्रयोजन / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 31 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रजावर्गकेँ पड़ल प्रयोजन।

अपनामे अपनैती चाही,
भदै, अगहनी चैती चाही,
दूध-दूध आ पानि-पानि लय
गामेमे पंचैती चाही।

खेतक खेत पटौनी चाही,
नहरिक नङड़िसटौनी चाही,
फुर्र-फाँइमे उड़वय वाली
घरनी नहि बिलटौनी चाही।

सुन्दर, स्वच्छ घड़ारी चाही
आ निष्पक्ष भँडारी चाही,
काज कतेको पैघ रहओ
नहि लाम-काफ सरकारी चाही।

मनी झड़य से बीया चाही,
दुन्ना नहि, दूतीया चाही,
थोड़ो सन हो, नीक-निकुत हो,
किन्नहुँ ने ए छीया! चाही।

बेटी नहि अगतीया चाही,
बेटा नहि पछतीया चाही,
एकेटा हो, मुदा अन्हारक
घरमे जरइत दीया चाही।

हृदय पवित्र पड़ोसी चाही,
संयत कमला-कोसी चाही,
देहक नापेँ वस्त्रक संगहि
पेटक नापेँ चाही भोजन
प्रजावर्गकेँ यैह प्रयोजन।

रचना काल 1970