Last modified on 31 जनवरी 2015, at 18:20

देखू दिल्लीक रंग / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:20, 31 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखू दिल्लीक रंग
आखिरमे आबि भेल लोक-सभा भंग।

सत्तरि सुधंग सोझ कयलक प्रसंग,
अबितहि एकहत्तरि उघाड़ि देलक अंग।

प्रतिपक्षी चुटकीमे भेला चितंग,
रमकैत पछबामे बहि गेल उतरंग।

करितो समर्थन, करैत छलनि तंग,
घोषणा सुनैत मात्र भेल सेहो दंग।

बिड़रोमे गप्प उड़य रंग ओ विरंग,
वाम दहिन दूनूकेर झड़तनि अलंग।

के जनैछ ककरा के करता उलंग,
लबनी के लौता, के खयता लवंग।

रहि-रहिकय सबकेँ उठै’ छनि तरंग,
भोग हेतनि नरक आ कि चढ़ता सरंग।

झाँउ-झाँउ सूनि चित्त रहै’ छलनि चंग,
बेस भेलनि लड़बाकेर चढ़लनि उमंग।

गेँठ-जोड़ होइत छलै’ नारि पुरुष संग,
धन्य ई चुनाव तकर बदलि देलक ढंग।

जनता तँ जनते थिक नंग ओ धड़ंग,
लूरि-मुँहक कोन कथा चालिओ अबढंग।

धरता क्यो माँटि, क्यो दफानता पलंग,
सोचि-सोचि मगन रहथि ‘बतहू’ मतंग।

रचना काल 1971 ई.