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देखू दिल्लीक ताव / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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देखू दिल्लीक ताव
अलग-बलग सुतरि गेलनि इन्दिराक दाव।

नहि, नहि, नहि, कहितहिमे पहिनहि कराय देल
घोषणा जे मध्यावधि होयत चुनाव,
धयलनि करुआरि पार-घाटे उतारि देल
उब-डुब करैत कङरेसियाकेर नाव।

कयलनि चितंग कते मत्ता-मतंगजकेँ
असलोसँ बेसी सुतारि लेलनि फाव,
ठाम-ठाम कतेक ढेङ ठामहि पर उनटि गेल
पऽ तँ पड़ल एतय, ओतय चिरा गेल घाव।

देश अपन बेस, भेष घयने विदेशकेर,
भारतीयताक संग दूर कय लगाव,
आओत समाजवाद बादमे, समाज मुदा
नोन-तेल लकड़ीकेर बूझि लेत भाव।

जनता बेचारो की जनती जे वामपन्थकेर
छैक कोन देश दिस कय झुकाव,
भारतकेँ इण्डियाक रूप दय बनाउ भव्य
मानि लेल गेल मित्रदेशकेर सुझाव।

हीन हो चरित्र, चित्र दीनताक निखरि उठय,
जीह नमरि चाहि रहल खाइ हम पोलाव,
बतहू’ मतंग भूतनाथे सहाय होथि
देशकेर लाजक हो तैखन बचाव।

रचना काल 1971 ई.