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दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं / कांतिमोहन 'सोज़'
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दीवाना कहके कोई मुझे छेड़ता नहीं ।
बस्ती मैं मुद्दतों से तमाशा हुआ नहीं ।।
कल ज़िन्दगी मिली तो बहुत शर्मसार थी
जग में किसी ने उसपे भरोसा किया नहीं ।
हँसता था बोलता था कभी चीख़ता भी था
बस मैं तेरे बग़ैर कभी जी सका नहीं ।
मैं क्या गिला करूँ मैं अकेला दुखी नहीं
दर से तेरे किसीको दिलासा मिला नहीं ।
मैंने वफ़ा जो की तो निभाए चला गया
कैसे कहूँ कि प्यार में मेरी खता नहीं ।
हैरां था चारागर भी पशेमां था सोज़ भी
हर तीर मेरे दिल में था तीरे-वफ़ा नहीं ।।