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परम समाधि / दीप्ति गुप्ता

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युगों - युगों से सन्तो ने
आत्मिक मन्थन कर के
अनन्त अमरता साधी
पर मैनें, तुमने, हमने,
झेली तन की हर व्याधि,
ढेली मन की हर आधि!
जीवन - यात्रा करते - करते,
और इसमें ही जीते मरते
काटी ज़िन्दगी आधी!
लीन हो गए मन से,
मुक्त हो गए तन से,
मृत्यु बनी परम समाधि
मृत्यु बनी परम समाधि!