भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वतन / दीप्ति गुप्ता

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो आँखो का तारा, वो प्यार हमारा
वो प्यारा वतन है, वो घर है हमारा!

वो पेड़ों की शाखें, चहकती चिरैया
वो मैना की पाँखें, फुदकती गौरैया
वो बचपन हमारा, हमारा गगन है
वो आँखो का तारा, वो प्यारा वतन है!

वो दादी की बाँहों में, किस्सों का सुनना
वो माँ के दुलारे से, आँचल में छुपना
वो ममता का सागर, हमारा सहन है
वो आँखो का तारा, वो प्यारा वतन है!

वो आमों की बौरे, वो कोयल की कुहकन
वो बासन्ती फूलों पे, भौंरों की गुन्जन
वो उपवन हमारा, हमारा चमन है
वो आँखो का तारा, वो प्यारा वतन है!

वो नदियों की कलकल, वो झरनों का झरना
वो सागर की उमड़न, लहर का मचलना
वो सतरंगी दुनिया, हमारा सपन है
वो आँखो का तारा, वो प्यारा वतन है!

वो नदियों के पाटों पे, मेलों के डेरे
वो पूनम की रातों में, गीत - घनेरे
वो मेलों की रौनक, हमारा शगन है
वो आँखो का तारा, वो प्यारा वतन है!