Last modified on 19 मार्च 2015, at 11:32

बौराया मन / दीप्ति गुप्ता

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यादों के झोंको से बौराया मन
बहलता नहीं यह सम्हलता नहीं
बहुत हमको तड़पाता,तरसाता मन
सूरज में तपता,
ये सागर में तिरता
बदली में छुपता,
सताता ये मन
पावस की रिमझिम में,चीड़ों की सनसन में
भीगा ये खोया सा, सूना सा मन
किताबी खतों को उलटते - पलटते
आँखों में घिरता,
उमड़ता ये मन,
सुहाने से प्यारे से
फूलों के मौसम में
वादियों भटकता,
अकेला ये मन
पतझड़ के मौसम में, पत्तों के ढेरों पे
अटकता, फिसलता,
बेचारा ये मन!
उजड़े घरौन्दे की,
सूनी दीवारों से रह-रह
के टकराता,
आहत ये मन!