भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:55, 20 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पानी से हर बूँद बनी है,
पानी का ही सागर ।
नभ में बादल दौड़ लगाते,
भर पानी की गागर॥
पानी से ही बहते झरने,
नदियाँ नाले बहते।
ताल-तलैया, झील, सरोवर
पानी से शुभ रहते॥
पानी से ही फसलें उगतीं,
हर वन उपवन फलता।
पानी से ही इस वसुधा पर
सबका जीवन चलता॥
आओ, बचत करें पानी की
पानी उत्तम धन है।
पानी से ही यह जग सुन्दर
पानी से जीवन है॥