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प्रेम की स्मृतियाँ-1 / येहूदा आमिखाई
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:20, 12 जनवरी 2008 का अवतरण
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छवि
हम कल्पना नहीं कर सकते
कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना
ऐसा हमने कहा
और तब से हम रहते हैं इसी एक छवि के भीतर
दिन-ब-दिन
एक दूसरे से दूर , उस मकान से दूर
जहाँ हमने वो शब्द कहे
अब जैसे बेहोशी की दवा के असर में होता है
दरवाज़ों का बंद होना और खिड़कियों का खुलना
कोई दर्द नहीं
वह तो आता है बाद में ......