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आह्वान युवा वर्गसँ / शम्भुनाथ मिश्र

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सब क्यौ मिलि सुमिरन करू, नहि पाइ गनायब प्रण करू
सबसँ पैघ दान थिक कन्या आदर्शेक शरण धरू

सकल व्यवस्था बदलल सबतरि
सीमित हो परिवार
बेटा बेटी अंग समाजक
छै समान अधिकार

काटर बनल समाजक कैन्सर तकरा आब खतम करू

उच्चासन चढ़ि भाषण दै छथि
हम नहि लेब दहेज
किन्तु गनाबय काल रखै छथि
नहि कोनो परहेज

पुरुषार्थी बनबी बेटाकेँ ताहि लय सब श्रम करू

युवावर्ग संकल्पित हो तँ
तखनहि हटतै रोग
तड़क-भड़क आ फूसि फटककेर
नहि कोनो उपयोग

व्यर्थ अपव्यय आ आडम्बर तकरहु आब खतम करू

अछि असाध्य ई रोग दहेजक
सब क्यौ होय तबाह
बेचि घड़री करय पड़ै छै
बेटीकेर बियाह

बेटा बेटी बूझि बराबरि मनकेर भरम खतम करू
भसिआयल जा रहल व्यवस्था
रुकैत कोना प्रवाह
हो समाज सत्-शिव-सुन्दरयुत
करी तकर निर्वाह

समरसताकेर बहल हवा छै धर्म न अपन खतम करू

नारी होइछ शक्ति पुरुषकेर
कहिया बूझब आब
एकक बिनु दोसरक मूल्य नहि
बुझबाकेर अभाव

कनियाँकेँ असली दहेज बुझि मोन अपन बम-बम करू