भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बागन भये बसन्त अबईयाँ / ईसुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईसुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बागन भये बसन्त अबईयाँ,
न जा विदेसै सँईयाँ।
पीरी लता छता भई पीरी,
पीरी लगत कलईयाँ।
सूनी सेज नींद ना आवै,
विरहन गिनें तरँइँयाँ।
तलफत रहत रेंन दिन सजनी
का है राँम करइँयाँ?
ईसुर कऐं सजा दो इनखाँ,
परों तुमाई पइँयाँ