बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
मोये बल रात राधका जी कौ,
करैं आसरौ की को।
दीन दयाल दूर दुख मेलत,
जिनको मुख है नीको।
पैले पार पातकी कर दए,
मोहन सौ पति जी को।
काँलों लगत खात सब कोऊ,
स्वाद कात ना थी को
ईसुर कछू काम की जानै,
कदमन के ढिंग झीकौं।