बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
दिल रहौ दाबनी में बसकें,
मों फेरों इतखाँ तुम हँसकें।
झँझरीदार खुली ज्यों पुतरी
पटियन बीच रई लसकें।
दोई भोंय दाब कें बैठी
कानन लों खेंचें कसकें।
ईसुर प्रान कौन के लेतीं?
राधा के माथै धसके।
दिल रहौ दाबनी में बसकें,
मों फेरों इतखाँ तुम हँसकें।
झँझरीदार खुली ज्यों पुतरी
पटियन बीच रई लसकें।
दोई भोंय दाब कें बैठी
कानन लों खेंचें कसकें।
ईसुर प्रान कौन के लेतीं?
राधा के माथै धसके।