भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नवपुराण-नवइतिहास / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 21 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ने पुराणक वस्त्र पुरना, नग्नवसना ने नवीना
अंतरंगक अंग शुचि वहिरंग रुचि रंजन प्रवीना
आइ नव परिवेश शेष विशेष वेषक रचब रचना
कवि! हमर छवि आँकबे नव वृत्त प्राची-पटल घटना
नवयुगक अवतरण, नव प्राचेतसक संबोधना हित
सूत - शौनक नवे, व्यासो अभिनवे, युग कल्पना नित
--- ---
कनककशिपुक क्रूरतासँ जखन युग - प्रहलाद ताडित
तखन भवनक खंभसँ प्रगटय दियौ नरसिंह नादित
निगम मणिकेँ लुटय आबय देखु, कटु कनकाक्ष क्रूरे
महामीनक अवतरण हित जनक मन करबे अधीरे
यदि च दितिजक दुराग्रह डुबबय चहय वसुधाक धूजा
की न उचित महावराहक विकट दन्तावलिक पूजा?
सिन्धु मन्थन हित यदि च सुर - असुर संहति सर्जना हो
शेष रज्जुक योजना हित कमठ पीठक अर्चना हो
दानदर्पी बली बलि, पुनि वामनी संवर्धना हो
अमृत छीनय सुरासेवी, मोहिनीक प्रवर्तना हो
यदि च मिझबय सहसभुज जमदग्नि अग्नि बहाय झंझा
प्रखर परशु थम्हायबे शुभ की न रामक सुदृढ़ पंजा?
यदि च पुनि भूदेव दुर्दम, शैव शक्तिक दुष्प्रयोगी
वध अवधि अवधक किशोरक पाणि धनु - वाणक प्रयोगी
आइ मर्यादा - पुरुष - लीला - वपुष अवतरण संगहि
आइ बुद्ध - प्रबुद्ध कल्किक कल्प संकल्पक प्रसंगहिँ
पंचदेवक पांचभौतिकता उपर देवत्व दुर्भर
आइ देवत्वक प्रतिष्ठा मानवक निष्ठाक ऊपर
सूर शूरक रूप रूपित, गणपतिहु गणतंत्र पूरक
पच देवहु संचमंच रिपु - प्रपचक मंच चूरक
आइ गौरी बनथु श्यामा, शिव जखन शव बनल भूतल
योगमाया सजग जगबथु शेषशयी पुरुष सूतल
ज्योति लिंग इरोत सून - मसान नहि जनपथहु चमकओ
स्फुरित शक्तिक पीठशक्तिक स्रोत जलथल सगर उमड़ओ
रक्तबीजक रक्त अणु - परमाणु चाटथु क्रुर काली
शारदा विज्ञान वैभव, अन्नपूर्णा शस्य - शाली
देवयानी कच - कलापक आइ जदू कच उपर नहि
साधना संजीवनीकेर लगन लागल मनहि जखनहि
आइ पार्थक चित्तपट नहि खचित सुरबालाक छवि धन
पाशुपत व्रत जखन संकल्पित, न भय कल्पित छनहु मन
--- ---
आइ पुनि सुर - असुर संग्रामक नवल इतिहास घटना
सिन्धु मंथन हित विहित प्रतिनिधि करय नवसृष्टि रचना
पद्य - पद्मक संग गद्य - गदाक घूर्णित गति प्रखर हो
शंख ध्वनि पुनि चक्र चंक्रम प्रेरणामय अभय वर हो