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एना घरऽ की घट्टी बी बुरी माय / पँवारी

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पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एना घरऽ की घट्टी बी बुरी माय
बारीक उड़-उड़ जाय, मोटो दरू कुई नी खाय
एना घरऽ को कुत्ता बी बुरो माय
आधी डाली ते दात सरसराय
सपोरी डालय ते सासु कुरकुराय।1।
एना घरऽ को बईल बी बुरो माय
बाँधन जाऊ ते मारन दौड़य
नी बान्धु ते दिवर्या लड़य
एत्ता बोल मसी सह्या नी जात
मसी रह्या नी जात।।