उसका ख्याल मेरी देह पर चढ़े
खाल की तरह है
जब आता है
गुलाबी ठण्ड में भी धूप का एक कतरा
मेरी रूह पर फैल जाता है
और जब जाता है तो देह उघाड़ हो जाती है
कभी- कभी सोचता हूं
यह कमबख्त आता ही क्यूं है ?
चलो ! आ भी गया तो
फिर हृदय में समाने की बजाय
आत्मा को लहूलुहान कर
देह से दूर वापस जाता ही क्यूं है ?
पर ख्याल तो ख्याल है
इसका आना और जाना
सांसों के चलते रहने तक लगा ही रहेगा
देह स्थिर, सत्य है, शाश्वत है
खुद को ढ़कने का जतन
अब तो हमें सीख ही लेना चाहिए।