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मुकरियाँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र

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सीटी देकर पास बुलावै।
रुपया ले तो निकट बिठावै।।
लै भागै मोहि खेलहिं खेल।
क्यों सखि सज्जन, नहिं सखि रेल।।

सतएँ-अठएँ मा घर आवै।
तरह-तरह की बात सुनावै।।
घर बैठा ही जोड़ै तार।
क्यों सखि सज्जन, नहीं अखबार।।