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कंसक ध्वंसकारी प्रवृत्ति / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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एम्हर गोकुलक गाम बनल हरि शैशव लीला धाम
जतय दिव्य बालक दुहु विलसथि राम तथा घनश्याम
कंस नृशंस ओम्हर भविष्य प्रति अति आतंकित चित
व्रज मंडलमे शिशु-निपात हित चिन्तारत कटुवृत
अध वक वत्स ससुर मायावी जे छल पोसल पुष्ट
बली छली जत लंब-प्रलंब जुटाओल सबकेँ दुष्ट
कहल, हमर सब दिनसँ रहलह शुभचिन्तक एकान्त
कहइत छिअह रहस्य अपन बुझि जहि ले’ रही अशान्त
बुझले छह कहि गेल छलय, देवी नभवाणी भावी
वधकर्ता तोहर क्यौ ब्रजहि जनमलह दिव्य प्रभावी
तकर खोजमे ओज करह जनु, व्रजमण्डलकेँ घेरि
शिशु निपात करबामे लागह, ने संकोच न देरि
आगि सुनगि नहि सकय मिझाबह पहिनहि पानि बहाय
अण्डहिकेँ खण्डित कय दैह पौआ-नहि कहुँ बहराय
बुझि न सकय क्यौ, तेँ तेहन किछु रूप धरह अज्ञात
बचिं न सकय क्यौ बाल हालमे जनमल जे नवजात