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यौवन-स्मृति / प्रतिपदा / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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आइ हमर अमातमीकेँ पूर्णिमाक पियास लागल
सुप्त मनमे लुप्त विभवक रस भरल अनुभूति जागल
आबि पाँतर बीच सहसा कुंज - पुंजक छविक छाया
विमन करइछ, कास वनमे हँसि कदम्बक मजु माया
स्मृतिक दीपक हमर खण्डहरमे हठी के आबि बारल?
नव वसन्तक सरस सुषमा ग्रीष्म - उष्माकेँ पजारल
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जखन मधुमय मलय - पवनक रथ चढ़ल ऋतुराज आवथि
मंजरित माकन्द - मकरन्देँ मिलिन्दक मन जगाबथि
मधु-निकुंजक मंजु शीतलता लतावलि बढ़ि सजाबथि
झुलि रसालक डारिसँ कोकिल कलित कण्ठेँ बजाबथि
किन्तु तखनहुँ हन्त! हमर करील - वनमे ठूठ शाखा
ग्रीष्म - ज्वालामय हृदय नहि सुनय रसमय मधुक भाषा
सघन श्यामल जलद कुन्तल ललित नभ बालाक आनन
बिन्दु-बिन्दु उदार अम्बर बरसि पुलकित करय कानन
वकुल मुकुलित सुरभि शीतल भरय दिस-दिस पवन व्यापी
नाचि-नाचि कला ललित व्यंजित करय चित्रित कलापी
किन्तु बादर भरल भादर कृपण की कारण? हताशेँ
हमर चातक विमन, मूर्छित भय रहल अछि आइ प्यासेँ
दग्ध भेल वसन्त ग्रीष्मेँ हमर पावस शरद - शोषित
कास - हासो पंकजक वन पुनि पवन हेमन्त दूषित
हमर उपवनमे चतुर्दिक् रहत पतझर मात्र वासी
किन्तु नहि ओ आबि सकता पल्लवित ऋतुपति प्रवासी
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पथिक! जुनि पूछह, हेरायल हमर मन अज्ञात भावेँ
छी तकैत कतेक झुकि-झुकि कतहु भेटओ कोनहु भावेँ
दन्त मुक्ता देल, श्यामल केश नीलम नोचि फेकल
किन्तु ओ माणिक्य तारुण्यक कोनहु मोलेँ न भेटल
नहि ययातिक युक्ति जागृत काय पुनि नवकल्प कल्पित
भेटय बिनु याचनहि सभकेँ किन्तु एकहि बेर अल्पित