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उपेक्षित / प्रतिपदा / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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वीणा के सखि! आज बजाबथि?
युग-विच्छिन्न तार योजित कय की बुझि राग जगाबथि?
उपवन एक विजन होइत यदि की मधुमास उदास?
की अनर्थ जँ एक कुसुम क्ंिशुकक सहय उपहास?
एक बिन्दु जँ सिन्धु क सीमा सँ तट-सैकत लीन!
पल्लव एक झरत यदि कानन की तरु-तति रुचि-हीन?
नखत अनन्त बरय नभ आङन, दीप एक द्युति दीन
दल एक पंक-अंक झरि संगत, तेँ की शतदल क्षीण?
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मूक कण्ठ बसि वीणा - वादनि हठि उर-तार सम्हारथि!
कोतुक - वश अगुलिक परस रस की स्वर-राशि सजाबथि?
वीणा के सखि! आज बजाबथि!