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हास-उपहास / प्रकीर्ण शतक / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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मच्छड़ - सीता निद्रा हरि चुसल, निशिचर रक्त अलच्छ
रवइत दशमुख राबणो मच्छड़ ई परतच्छ।।1।।
विजया यात्रा कय प्रथम, पावस सागर पार
मारुत सङ रघुपति शिशिर, मच्छड़ रावण भार।।2।।
उड़िस - बैसय चुपहि पलंग, अंग - अंगमे सटि चिमटि
बिकुटि चुमि कर तंग, नटखट प्रिय सम उड़िस ई।।3।।
कृपण प्रसंग - कृपन जनम सुनितहिँ कँपय सुर मुनि असुर तमाम
नामकरण जनिकहि सिरें नामहु भेल अनाम।।4।।
प्रणम्य अबतारे - स्वर्ण-गर्भ, अव्यय, उदर सभ समेटि, नहि गम्य
कृपण विष्णुहि क अवतरण ककर न बनल प्रणम्य।।5।।
महान् - पर हित संचित संपदा, अशन - वसन नहि ध्यान
कनक अचल रचितहुँ, कनक छूति न, कृपन महान!!6।।
मात्रा भेद - सेबथि कोष निरंत, वद्धमुष्टि पर - शिर कतरि
कृपन कृपानि दुरंत, पानि टुटय पन नहि छुटय।।7।।
सदर्थ - जगत शब्दमय उक्ति, अर्थमात्र अछि अर्थ टा
धर्म काम ओ मुक्ति कृपण शास्त्र मे व्यर्थ टा।।8।।
असल-नकल - सुख दुख मान-अमान, जनिक हृदय नहि छुबि सकल
कनक जोति चित ध्यान, कृपण असल सभ जग नकल।।9।।