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प्रिया ओ प्रेयसी / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
ओ तुनुक सुषमा तनक श्री, तोँ मनक नित श्रेयसी!
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
ओकर भू्र - भंगीक केवल, मानसक मृग विकल चचल!
तोहर सरिता लहरि लहराइत ललित मृदु मानसी!
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
चटुल ओकरहु नयन अंचल, तोहर खंजन मोन चचल!
गोर गोल कपोल, किन्तु उषाक लाली आतशी!
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
ओकर अधरक रक्तिमापर, दन्त मुक्ता रजत उज्ज्वल!
तोहर अरुण प्रभातपर दिवसक प्रकाशक आरसी
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
ओकर हासक शुभ्र रेखा, कत तोहर शुचि चन्द्र-लेखा!
टिकुलि टिमटिम तोहर, नखत अनंत जगमग शिशु शशी
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
बेणि श्यामल कुसुम गुंफित, जलद-भाला तड़ित चुंबित।
अलक आकुल वदन, अनुखन, सघन झँपइत बिधु हँसी।
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
ओकर नव परिधान धानी, शस्य - श्यामल वन वनानी।
ओकर स्वर्णाभरण, कुसमाकर तोहर सुरभित रसी।
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
बोल मधु - माखल प्रियाकेर, रस भरल सुर कोकिलाकेर।
नूपुरक रव कतय पाओत, मंजु अलि-गुंजन यशी?
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!
ओ प्रिया रुचि - अनुचरी, तोँ प्रकृतिप्रेयसि! सहचरी
ओकर परिणय उपायन लय, तोहर नित प्रणयक वशी।
ओ प्रिया, तोँ प्रेयसी!