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गाछ-वृक्ष / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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बड़ - फूल न फल चाखय - सुँघय, ने दल व्यंजन योग
छाया दानहि पैघ बड़, नामहु बड़ संयोग।।22।।

पाकड़ि - पाकड़ि ने फल-फूल केवल पैघ कलेवरे
किन्तु जेठ समतूल छाया सुख हुनकहि भरे।।23।।

पीपर - चंचल दल, बिनु फूल फल इंधनहुक न विधान
बनल महाजन बोधि तरु पीपर, भाग्य प्रमान।।24।।

आम - के नहि यौवन-मंजरित, तन-वन वयस-वसंत?
किन्तु कोकिला काकली आमहि प्रेम-उदत।।25।।

जामुन - यम निबास जग भरि कहओ, कारी फड़ जनु झाम
सड़य न जड़ (ल) योगहु, हरय उदर रोग; जय जाम!!23।।

लीची - भरखरि भरि वर्षहु फड़थु कतबहु लकुच लताम
लीची लाली उपवनक अनत न कतहु उपाम।।27।।

कटहर - हँसओ लाल भुटका, विकट कटहर! काँट कतेक!
फड़ि शत ओ असते, भरय सात पेट ई एक।।28।।

 अमलतास - पहिरन स्वर्णाभण तन, कतबहु गुच्छ क गुच्छ
मलिन अमत फल सँ बनह अमलतास! तोँ तुच्छ।।29।।

नीम - टेढ़ डाँड़, फल निमौरी, तीत अकत फुल-पात
तदपि नाम नीम क चलय, करय रोग जेँ कात।।30।।

बबूर - ने कुसुमित ने पल्लवित ने फल मधुर फड़ैछ
केवल काँटहि काँटसँ आँट बबूर करैछ।।31।।

साहर - घन गर्जन - भय लोक कत, साहर नाम जपैछ
रक्षा ककरहु की करत? छाहरि धरि नहि दैछ।।32।।

चानन - लेपिअ घसिअ भिजाय, चानन महमह घर भरय
अथवा आगि जराय, धूपित करइछ सुरभि दय।।33।।

देवदारु - त्वच तजि तज, स्वेदहिँ घुमन, तेजि पात तेजपात
सारिल सरर शरीर तेँ देव - दारु विख्यात।।34।।

तरु सामान्य - दल-पल्लव फल-फूल रस, इंधन छाया-साज
प्राण-वायु पूरिअ अहीँ, तेँ पूजित तरु - राज!।।35।।